work, energy and power
WORK, ENERGY AND POWER
Whenever a force makes a body move, then work is said to be done. But for doing work, energy is required. When work is done by human beings, machines or animals they get energy from the food which they eat and if work is done via machines, then energy is supplied by fuels or by electricity. So, we can say that when work is done an equal amount of energy is used up.
Basically, Work done by a force depends upon two factors:
(i) Magnitude of the force
(ii) Distance through which the body moves in the direction of force.
Therefore, Work is measured by the product of force and displacement of the body along the direction of force. It is a scalar quantity and its SI unit is joule.
Work = Force X Distance (S) moved in the direction of force
Or Work = F X S
- If a body gets displaced by S when a force F acts on it, then
Work W = F S Cos θ
Where θ = angle between force and displacement
Note: The condition for a force to do work is that it should produce motion in an object, i.e. if the distance moved is zero, and then the work done on an object is also zero. For example, if a man pushes a wall, but there is no displacement that is wall is stationary it does not move, then, the work done by the man on the wall is zero. But the work done on the body of the man himself is not zero. Because while pushing the wall man consumes energy, his muscles are stretched and he feels tired.
Also, we can take another example that if a man stands still at a bus stop with heavy suitcase in his hand, he may get tired soon but he does no work in this situation because suitcase held by the man do not move at all.
So, it is clear now that whenever a force is applied to an object it is not necessary that work is done. Work is done when force able to move the object.
What happens when work is done against gravity?
Whenever work is done against gravity, the amount of work done is equal to the product of weight of the body and the vertical distance through which the body is lifted.
Work done in lifting a body = Weight of body x Vertical distance
W = m x g x h
Where W = work done
m = mass of the body
g = acceleration due to gravity
h = height through which the body is lifted
Motion and Mechanics
1 Kilojoules (KJ) = 1000 joules (J)
The unit joule is named after a British physicist James Prescott Joule.
- Energy developed by a body due to work done on it is called mechanical energy. It is of two types:
(i) Potential Energy
(ii) Kinetic Energy
Potential Energy: The capacity of doing work developed in a body due to its position or configuration or we can say that the energy of a body due to its position or change in shape. For e.g. Energy of compressed string, energy of water collected at a height, energy of spring in a watch etc.
- The energy of a body due to its position above the ground is called gravitational potential energy.
- The energy of a body due to change its shape and size is called elastic potential energy.
- Potential energy of a body in the gravitational field of earth is mgh. where m = mass, g = acceleration due to gravity, h = height of the body from surface of the earth.
Kinetic Energy: The energy of a body due to its motion. If a body of mass m is moving with speed v, then Kinetic Energy of the body is 1/2mv2.
From the above formula it is clear that:
- If the mass of the body is doubled, its kinetic energy also gets doubled.
- If the mass of the body is halved, its kinetic energy also gets halved.
- If the velocity of a body is doubled, its kinetic energy becomes four times.
- If the velocity of a body is halved, then its kinetic energy becomes one-fourth.
Relation between Momentum and Kinetic Energy
K.E = p2/2m where p = momentum = mv
So, it is clear from above formula that when momentum is doubled, kinetic energy becomes four times.
Power = Work done/ time taken
Or P = W/t
where P = Power
W = work done
t = time taken
Also, when work is done, an equal amount of energy is consumed. Thus, power is also defined as the rate at which energy is consumed or utilised.
Power = Energy consumed / Time taken
Or P = E/t
where P = Power
E = energy consumed
t = time taken
The S.I unit of power is watt (W). One watt is the power of an appliance which does work at the rate of 1 joule per second.
1 watt = 1 joule/ 1 second
Or 1W = 1 J/ 1 s
1 watt = 1 joule per second 1 KW = 103 watt
1 MW = 106 watt
- Horse power is another unit of power which is equal to 746 watt i.e. 1 horse power is equal to about 0.75 kilowatt (0.75 KW).
1 watt second = 1 watt x 1 second
1 watt hour (Wh) = 3600 joule
1 kilowatt hour (kWh) = 3.6 x 106 joule
Hence, we can say that many physical situations can be greatly simplifies by understanding about the work. As, it enables us to evaluate force over distance and time. Also, it gives a broader understanding not just the forces acting on a given object, but about what happens to that object over the course of a given journey.
d दूरी विस्थापन के लिए वस्तु पर किया गया कार्य-
W= विस्थापन की दिशा में कार्यरत बल⨉विस्थापन
=बल F का क्षैतिज घटक⨉विस्थापन
=Fcosθ⨉d
[ W=Fd cosθ ]
सामर्थ्य का मात्रक (Unit of Power)-
अतः सामर्थ्य (Power) का मात्रक जूल-सेकेण्ड -1 अथवा वाट है | सामर्थ्य के अन्य बड़े मात्रक भी हैं जैसे किलोवाट (kW) तथा मेगावाट (mW)
⇒1 kW=1000 वाट या 103 वाट
⇒1 mW=1000000 वाट या 106 वाट
Note:- मशीनों की सामर्थ्य (Power) को अश्वशक्ति (Horse Power) में भी व्यक्त किया जाता है |
[ 1 अश्व शक्ति (H.P.)=746 वाट ]
(A) धनात्मक कार्य (Positive work) ⇒ जब वस्तु पर लगाए गए बल का विस्थापन बल की ही दिशा में होता है, तब बल द्वारा किया गया कार्य (Work) धनात्मक होता है |
उदाहरण :- जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को पृथ्वी सतह से ऊपर उठाता है, तब व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य धनात्मक होगा |
(B) ऋणात्मक कार्य (Negative Work) ⇒ वस्तु का विस्थापन वस्तु पर लगे बल के विपरीत दिशा में होता है, तब बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होता है |
उदाहरण :- जब हम पृथ्वी पर पड़ी किसी वस्तु को ऊपर उठाते है, तब पृथ्वी के गुरुत्वीय बल द्वारा वस्तु पर किया गया कार्य ऋणात्मक होगा |
(C) शून्य कार्य (Zero work) :- जब बल और विस्थापन एक दूसरे के लम्बवत होते हैं, तब बल द्वारा कृत कार्य शून्य होगा |
उदाहरण :- रोड पर दौड़ती हुई कार, बन्दूक से निकलने वाली गोली, झरने से गिरता हुआ पानी, और पृथ्वी से ऊपर जाते हुए रॉकेट की गति आदि में इनकी गति के कारण इनमें कार्य करने की क्षमता होती है, अतः इन सब में ऊर्जा है |
ऊर्जा का मात्रक भी वही होता है, जो कार्य का मात्रक (जूल) होता है | यह भी एक अदिश राशि है |
उसकी गतिज ऊर्जा होगी-
टकराने से पूर्व बॉक्स की गतिज ऊर्जा होगी |
जब यह बॉक्स स्प्रिंग से टकराता है, तब स्प्रिंग x दूरी तक दब जाती है, और बॉक्स का वेग भी शून्य हो जाता है, अतः बॉक्स की गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है | चूकि हम जानते हैं, कि ऊर्जा का केवल रुपान्तरण होता है, ऊर्जा नष्ट नहीं होती है |
फिर बॉक्स की गतिज ऊर्जा का क्या हुआ ?
बॉक्स की गतिज ऊर्जा स्प्रिंग के दबने (सम्पीडन) में खर्च हुई, इस अवस्था (स्प्रिंग की दबने अथवा सम्पीडन की अवस्था) में स्प्रिंग में तनाव रहता है | स्प्रिंग तनाव को कम करने के लिए बॉक्स को धकेल कर बॉक्स को उतनी ही गतिज ऊर्जा प्रदान कर देती है |
अर्थात् बॉक्स ने अपनी गतिज ऊर्जा के कारण स्प्रिंग पर जितना कार्य किया, वह कार्य स्प्रिंग में उसकी विशेष अवस्था (सम्पीडन) के कारण स्थितिज ऊर्जा के रूप में जमा हो गया | और जब स्प्रिंग अपनी सम्पीडन की अवस्था से सामान्य अवस्था में आयी, तब स्प्रिंग के अन्दर जमा स्थितिज ऊर्जा बॉक्स को गतिमान करने में खर्च हो गयी |
अतः किसी वस्तु (जैसे-स्प्रिंग) में विशेष अवस्था अथवा स्थिति के कारण कार्य करने की जो क्षमता होती है, उसे वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
स्प्रिंग की प्रत्यास्थ स्थिति ऊर्जा,
जहाँ k= स्प्रिंग का बल नियतांक है |
x = स्प्रिंग में खिचाव
(2) गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy) :- चित्रानुसार एक m द्रव्यमान के पिण्ड को पृथ्वी तल से h ऊँचाई तक उठाया जाता है | पिण्ड को h ऊँचाई तक ले जाने के लिए हमें गुरुत्व बल (mg) के विरुध्द कार्य करना होगा और यह कार्य ही पिण्ड में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है | जिसे उस वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
अतः पिण्ड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा,
U=गुरुत्व बल के विरुध्द किया गया कार्य = पिण्ड का भार ⨉ ऊँचाई
Note – ऊपर सूत्र में पृथ्वी तल (h=0) पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा शून्य मानी गयी है | यदि पुनः पिण्ड स्वतन्त्रता-पूर्वक गिरे तो mgh परिमाण का कार्य प्राप्त होगा |
(3) वैद्युत् स्थितिज ऊर्जा (Electrical Potential Energy) :- यदि वैद्युत् क्षेत्र में कोई आवेशित वस्तु रखी है, तो वह भी गुरुत्वीय क्षेत्र की भाँती वैद्युत् बल का अनुभव करेगी | और वैद्युत् बल के प्रभाव से पिण्ड में कार्य करने की क्षमता का समावेश होगा | वस्तु के विशेष अवस्था (विद्युत् क्षेत्र में स्थित होने) के कारण ही कार्य करने की यह क्षमता होती है, इसलिए कार्य करने के इस क्षमता अथवा ऊर्जा को वैद्युत् स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
(4) चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा (Magnetic Potential Energy) :- चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी गतिशील आवेश या धारावाही चालक में चुम्बकीय बलों के कारण जो कार्य करने की क्षमता उत्पन्न होती है, उसे चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
(5) रासायनिक ऊर्जा (Chemical Energy) :- पदार्थों में उनकी विशेष परमाणविक संरचना (Atomic Structure) के कारण जो स्थितिज ऊर्जा निहित होती है, उसे रासायनिक ऊर्जा कहते हैं |
(6) नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) :- पदार्थ के मूल कणों यानी प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन के नाभिक में रहने की विशेष अवस्था के कारण नाभिक में जो स्थितिज ऊर्जा निहित रहती है, उसे नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं |
(7) द्रव्यमान ऊर्जा (Mass Energy) :- महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन के अनुसार, प्रत्येक पदार्थ के उनके द्रव्यमान के कारण उनमें ऊर्जा होती है, जिसे द्रव्यमान ऊर्जा कहते हैं |
यदि m द्रव्यमान को ऊर्जा में बदले तो हमें कुल ऊर्जा प्राप्त होगी-
[E=mc2]
जहाँ c=3⨉108 मी०/से० प्रकाश की चाल है |
उदाहरण :- हम घरों में बल्ब या ट्यूबलाइट लगाकर विद्युत् ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित कर लेते हैं |
(ii) सोलर सेल की मदद से हम सौर ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित कर लेते हैं |
Whenever a force makes a body move, then work is said to be done. But for doing work, energy is required. When work is done by human beings, machines or animals they get energy from the food which they eat and if work is done via machines, then energy is supplied by fuels or by electricity. So, we can say that when work is done an equal amount of energy is used up.
Work
Work can be done when a force produces a motion. For e.g. when a person climbs the stairs of an office or a house, work is said to be done as he is moving against the force of gravity.Basically, Work done by a force depends upon two factors:
(i) Magnitude of the force
(ii) Distance through which the body moves in the direction of force.
Therefore, Work is measured by the product of force and displacement of the body along the direction of force. It is a scalar quantity and its SI unit is joule.
Work = Force X Distance (S) moved in the direction of force
Or Work = F X S
- If a body gets displaced by S when a force F acts on it, then
Work W = F S Cos θ
Where θ = angle between force and displacement
Note: The condition for a force to do work is that it should produce motion in an object, i.e. if the distance moved is zero, and then the work done on an object is also zero. For example, if a man pushes a wall, but there is no displacement that is wall is stationary it does not move, then, the work done by the man on the wall is zero. But the work done on the body of the man himself is not zero. Because while pushing the wall man consumes energy, his muscles are stretched and he feels tired.
Also, we can take another example that if a man stands still at a bus stop with heavy suitcase in his hand, he may get tired soon but he does no work in this situation because suitcase held by the man do not move at all.
So, it is clear now that whenever a force is applied to an object it is not necessary that work is done. Work is done when force able to move the object.
What happens when work is done against gravity?
Whenever work is done against gravity, the amount of work done is equal to the product of weight of the body and the vertical distance through which the body is lifted.
Work done in lifting a body = Weight of body x Vertical distance
W = m x g x h
Where W = work done
m = mass of the body
g = acceleration due to gravity
h = height through which the body is lifted
Motion and Mechanics
Energy
Capacity of doing work by a body is called energy. Energy is a scalar quantity i.e. it has only magnitude but no direction and its unit is joule. The energy required to do 1 joule of work is called 1 joule energy.1 Kilojoules (KJ) = 1000 joules (J)
The unit joule is named after a British physicist James Prescott Joule.
- Energy developed by a body due to work done on it is called mechanical energy. It is of two types:
(i) Potential Energy
(ii) Kinetic Energy
Potential Energy: The capacity of doing work developed in a body due to its position or configuration or we can say that the energy of a body due to its position or change in shape. For e.g. Energy of compressed string, energy of water collected at a height, energy of spring in a watch etc.
- The energy of a body due to its position above the ground is called gravitational potential energy.
- The energy of a body due to change its shape and size is called elastic potential energy.
- Potential energy of a body in the gravitational field of earth is mgh. where m = mass, g = acceleration due to gravity, h = height of the body from surface of the earth.
Kinetic Energy: The energy of a body due to its motion. If a body of mass m is moving with speed v, then Kinetic Energy of the body is 1/2mv2.
From the above formula it is clear that:
- If the mass of the body is doubled, its kinetic energy also gets doubled.
- If the mass of the body is halved, its kinetic energy also gets halved.
- If the velocity of a body is doubled, its kinetic energy becomes four times.
- If the velocity of a body is halved, then its kinetic energy becomes one-fourth.
Relation between Momentum and Kinetic Energy
K.E = p2/2m where p = momentum = mv
So, it is clear from above formula that when momentum is doubled, kinetic energy becomes four times.
Power
Power is defined as the rate of doing work. It is scalar quantity.Power = Work done/ time taken
Or P = W/t
where P = Power
W = work done
t = time taken
Also, when work is done, an equal amount of energy is consumed. Thus, power is also defined as the rate at which energy is consumed or utilised.
Power = Energy consumed / Time taken
Or P = E/t
where P = Power
E = energy consumed
t = time taken
The S.I unit of power is watt (W). One watt is the power of an appliance which does work at the rate of 1 joule per second.
1 watt = 1 joule/ 1 second
Or 1W = 1 J/ 1 s
1 watt = 1 joule per second 1 KW = 103 watt
1 MW = 106 watt
- Horse power is another unit of power which is equal to 746 watt i.e. 1 horse power is equal to about 0.75 kilowatt (0.75 KW).
1 watt second = 1 watt x 1 second
1 watt hour (Wh) = 3600 joule
1 kilowatt hour (kWh) = 3.6 x 106 joule
Principle of Conservation of Energy
Energy can neither be created nor destroyed. Only energy can be transformed from one form to another. Whenever energy is utilised in one form, equal amount of energy is produced in other form. Hence, total energy of the universe remains same.Some equipments used to transform energy are:
S.No. | Equipment | Energy transformed |
---|---|---|
1. | Dynamo | Mechanical energy in to electrical energy |
2. | Candle | Chemical energy in to light and heat energy |
3. | Microphone | Sound energy in to electrical energy |
4. | Loud Speaker | Electrical energy in to sound energy |
5. | Solar Cell | Solar energy in to electrical energy |
6. | Tube light | Electrical energy in to light energy |
7. | Electric bulb | Electrical energy in to light and heat energy |
8. | Battery | Chemical energy in to electrical energy |
9. | Electric motor | Electric energy in to motor energy |
10. | Sitar | Mechanical energy in to sound energy |
Hence, we can say that many physical situations can be greatly simplifies by understanding about the work. As, it enables us to evaluate force over distance and time. Also, it gives a broader understanding not just the forces acting on a given object, but about what happens to that object over the course of a given journey.
कार्य, ऊर्जा व शक्ति (Work, Energy and Power)
कार्य का होना तब माना जाता है जब वस्तु पर बल लगाने से वस्तु में गति उत्पन्न होती है और कार्य करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है| हम जो भोजन करते हैं, उससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है और यदि कार्य मशीन द्वारा किया जाता है तब ऊर्जा की आपूर्ति ईंधन या बिजली द्वारा की जाती है| इस लेख में हम कार्य, शक्ति और ऊर्जा का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं जिसमें उनकी कार्यप्रणाली, सूत्रों और एक-दूसरे के बीच के संबंध का वर्णन किया गया है, जो विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए काफी उपयोगी है|
जब कभी बल वस्तु को गतिशील बनाता है, तब कहा जाता है कि कार्य पूरा हुआ| लेकिन कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है| मनुष्यों या पशुओं को कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति भोजन द्वारा होती है जबकि मशीनों को कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति इंधनों या बिजली द्वारा होती है| इसलिए, हम कह सकते हैं कि जब कार्य होता है तब समान मात्रा में ऊर्जा का भी उपयोग किया जाता है| इस लेख में हम कार्य, शक्ति और ऊर्जा का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं जिसमें उनकी कार्यप्रणाली, सूत्रों और एक-दूसरे के बीच के संबंध का वर्णन किया गया है, जो विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए काफी उपयोगी है|
कार्य (Work)
जब किसी वस्तु पर कोई बल लगाने से उस वस्तु का बल की दिशा में विस्थापन
(गति उत्पन्न होना) होता है तब माना जाता है कि कार्य (work) हुआ है|
उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति किसी कार्यालय या घर की सीढ़ियां चढ़ता है,
तब कहा जाता है कि कार्य हुआ है क्योंकि वह गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत
गतिशील होता है|
मूलतः, किसी बल द्वारा किया गया कार्य दो कारकों पर निर्भर करता है:
(i) बल की मात्रा
(ii) दूरी (जिसके जरिए वस्तु बल की दिशा में गतिशील होता है)
इसलिए, कार्य को बल एवं बल की दिशा में वस्तु के विस्थापन के गुणनफल द्वारा मापा जाता है| यह एक अदिश (scalar quantity) राशि है और इसका SI मात्रक जूल (joule) होता है|
कार्य = बल X दूरी (बल की दिशा में तय की गई दूरी)
या कार्य (Work) = F X S
- जब किसी वस्तु पर F बल लगाने से वह S दूरी तक विस्थापित होती है, तब
कार्य (W) = F S Cosθ
जहां θ = बल और विस्थापन के बीच का कोण है
नोट: कार्य करने
हेतु किसी बल के लिए शर्त होती है कि वह उस वस्तु में गति पैदा करे अर्थात
यदि तय की गई दूरी शून्य है तो किसी वस्तु पर किया गया कार्य भी शून्य होता
है| उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी दीवार को धक्का देता है और वह
दीवार स्थिर रहती है, तब उस व्यक्ति द्वारा दीवार पर किया गया कार्य शून्य
कहलाएगा क्योंकि दीवार में कोई गति उत्पन्न नहीं होती है| लेकिन व्यक्ति
द्वारा खुद के शरीर पर किया गया कार्य शून्य नहीं होगा क्योंकि दीवार को
धक्का देने के दौरान व्यक्ति ने ऊर्जा का प्रयोग किया, जिसके कारण उसकी
मांसपेशियों में खिंचाव हुआ और उसने थकान महसूस की|
इसे हम एक और उदाहरण से समझते हैं-
यदि कोई व्यक्ति अपने हाथों में भारी सूटकेस लेकर बस स्टॉप पर स्थिर खड़ा
है, तो संभवतः वह जल्द थक जाएगा लेकिन इस स्थिति में वह कार्य नहीं कर रहा
है क्योंकि व्यक्ति द्वारा उठाया गया सूटकेस बिलकुल भी गतिशील नहीं है|
इसलिए, अब यह स्पष्ट है कि किसी वस्तु पर सिर्फ बल लगाने से कार्य नहीं होता है| कार्य तभी होता है जब बल लगाने से वस्तु गतिशील होती है|
प्रकाश के बारे में क्या जानते है आप |
गुरुत्वाकर्षण के विपरीत यदि कार्य किया जाए तो क्या होगा?
जब कभी गुरुत्वाकर्षण के विपरीत कार्य किया जाता है तो किए गए कार्य की
मात्रा वस्तु के वजन और जिस माध्यम के द्वारा वस्तु को उठाया जाता है, उसकी
ऊर्ध्वाधर दूरी के गुणनफल के समान होता है|
किसी वस्तु को उठाने में किया गया कार्य = वस्तु का वजन x ऊर्ध्वाधर दूरी
W = m x g x h
जहां W = किया गया कार्य
m = वस्तु का द्रव्यमान
g = गुरूत्वीय त्वरण
h = उंचाई (जहाँ तक वस्तु को उठाया गया)
ऊर्जा (Energy)
किसी वस्तु द्वारा कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं| ऊर्जा एक
अदिश राशि है अर्थात इसमें सिर्फ परिमाण होता है दिशा नहीं होती है| इसका
SI मात्रक जूल है|
1 जूल कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को 1 जूल ऊर्जा कहते हैं|
1 किलोजूल (KJ) = 1000 जूल (J)
कार्य या ऊर्जा के मात्रक के रूप में जूल का नाम ब्रिटिश भौतिकशास्त्री “जेम्स प्रेस्कॉट जूल” के नाम पर रखा गया है|
- किसी वस्तु द्वारा खुद पर किए गए कार्य से उत्पन्न ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं| यह दो प्रकार का होता है:
(i) स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy)
(ii) गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy)
स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy): अपने
स्थान या आकार की वजह से किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता या किसी
वस्तु की स्थिति या आकार की वजह से उसमें उत्पन्न ऊर्जा को हम स्थितिज
ऊर्जा कहते हैं| उदाहरण के लिए– संकुचित धागे की ऊर्जा, ऊंचाई पर एकत्रित
जल की ऊर्जा, एक घड़ी में लगे स्प्रिंग की ऊर्जा आदि|
- जमीन से उपर अपनी स्थिति की वजह से किसी वस्तु में उत्पन्न ऊर्जा को गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं|
- वस्तु के आकार और आकृति में बदलाव की वजह से उत्पन्न ऊर्जा को प्रत्यास्थ (elastic) स्थितिज ऊर्जा कहते हैं|
- पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में किसी वस्तु की स्थितिज ऊर्जा mgh होती है|
जहां m = द्रव्यमान, g = गुरूत्वीय त्वरण, h = पृथ्वी के सतह से वस्तु की ऊंचाई है|
गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy): किसी वस्तु में उसकी गति
के कारण उत्पन्न ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं| यदि m द्रव्यमान की वस्तु v
गति से गतिशील है तो वस्तु की गतिज ऊर्जा 1/2mv2 होगी|
उपरोक्त सूत्र से यह स्पष्ट है कि:
- यदि वस्तु का द्रव्यमान दोगुना हो जाए तो उसकी गतिज ऊर्जा भी दुगुनी हो जाएगी|
- यदि वस्तु का द्रव्यमान आधा हो जाए तो उसकी गतिज ऊर्जा आधी रह जाएगी|
- यदि वस्तु का वेग दुगुना कर दिया जाए, तो उसकी गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाएगी|
- यदि वस्तु का वेग आधा कर दिया जाए तो उसकी गतिज ऊर्जा एक चौथाई रह जाएगी|
गतिज ऊर्जा और संवेग के बीच संबंध
K.E = p2/2m जहां p = संवेग = mv
उपरोक्त समीकरण से स्पष्ट है कि संवेग को दुगुना करने पर गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाएगी|
शक्ति (Power)
कार्य करने की दर को शक्ति (Power) कहते हैं| यह एक अदिश राशि है|
शक्ति = किया गया कार्य/ कार्य करने में लगा समय
या P = W/t
जहां P = शक्ति
W = किया गया कार्य
t = कार्य करने में लगा समय
इसके अलावा, जब कार्य होता है तो उसमें कार्य के बराबर मात्रा में ऊर्जा
खर्च होती है| इसलिए, शक्ति को ऊर्जा की खपत या उपयोग के दर के रूप में भी
परिभाषित किया जाता है|
शक्ति = ऊर्जा खपत/ ऊर्जा खपत करने में लगा समय
या P = E/t
जहां P = शक्ति
E = उपयुक्त ऊर्जा
t = ऊर्जा खपत करने में लगा समय
शक्ति का SI मात्रक वाट (W) होता है|
एक वाट किसी उपकरण की वह शक्ति होती है जिसके कारण वह 1 जूल प्रति सेकेंड की दर से कार्य करता है|
1 वाट = 1 जूल/सेकेंड
या 1W = 1 J/s
1 किलोवाट (KW) = 103 वाट (watt)
1 मेगावाट (MW) = 106 वाट (watt)
अश्व शक्ति (Horse power) शक्ति की एक अन्य इकाई है जो 746 वाट के बराबर होती है अर्थात 1 अश्व शक्ति (horse power) लगभग 0.75 किलोवाट (0.75 KW) के बराबर होती है|
1 वाट सेकेंड = 1 वाट x 1 सेकेंड
1 वाट घंटा (Wh) = 3600 जूल
1 किलोवाट घंटा (kWh) = 3.6 x 106 जूल
ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत
ऊर्जा का न तो निर्माण होता है और न ही उसका विनाश होता है| ऊर्जा को
सिर्फ एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है| जब कभी एक रूप
में ऊर्जा का उपयोग होता है, तो दूसरे रूप में समान मात्रा में ऊर्जा
उत्पादित होती है| इसलिए, ब्रह्मांड की कुल ऊर्जा नियत बनी रहती है|
ऊर्जा रूपान्तरण के कुछ उपकरण निम्न हैं:
क्र. सं.
उपकरण
ऊर्जा का रूपान्तरण
1
डायनेमो
यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
2
मोमबत्ती
रसायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में
3
माइक्रोफोन
ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
4
लाउडस्पीकर
विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में
5
सौर सेल
सौर ऊर्जा/प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
6
ट्यूबलाइट
विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा एवं ऊष्मा ऊर्जा में
7
बिजली का बल्ब
विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा एवं ऊष्मा ऊर्जा में
8
बैट्री
रसायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
9
बिजली का मोटर
विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में
10
सितार
यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कार्य को समझने से कई
भौतिक स्थितियों को बहुत हद तक सरल बनाया जा सकता है| चूंकि यह हमें दूरी
और समय के साथ बल का मूल्यांकन करने में सक्षम बनाता है| इसके अलावा, यह न
सिर्फ दी गई वस्तु पर कार्य करने वाले बल को समझने में बल्कि पूरी
प्रक्रिया में उस वस्तु के साथ क्या होता है, उसके बारे में व्यापक समझ
प्रदान करता है|
क्र. सं. | उपकरण | ऊर्जा का रूपान्तरण |
1 | डायनेमो | यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
2 | मोमबत्ती | रसायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में |
3 | माइक्रोफोन | ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
4 | लाउडस्पीकर | विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में |
5 | सौर सेल | सौर ऊर्जा/प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
6 | ट्यूबलाइट | विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा एवं ऊष्मा ऊर्जा में |
7 | बिजली का बल्ब | विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा एवं ऊष्मा ऊर्जा में |
8 | बैट्री | रसायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
9 | बिजली का मोटर | विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में |
10 | सितार | यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में |
OR
कार्य का व्यापक सूत्र (Extensive Formulae of work)
चित्रानुसार यदि किसी वस्तु पर क्षैतिज से θ कोण पर बल लगाने से वस्तु d दूरी क्षैतिज विस्थापित होती है |d दूरी विस्थापन के लिए वस्तु पर किया गया कार्य-
W= विस्थापन की दिशा में कार्यरत बल⨉विस्थापन
=बल F का क्षैतिज घटक⨉विस्थापन
=Fcosθ⨉d
[ W=Fd cosθ ]
सामर्थ्य (Power)
किसी कर्ता या मशीन के कार्य करने की दर उस कर्ता या मशीन की सामर्थ्य अथवा शक्ति कहलाती है | इसे ‘P’ से व्यक्ति करते हैं |सामर्थ्य का मात्रक (Unit of Power)-
अतः सामर्थ्य (Power) का मात्रक जूल-सेकेण्ड -1 अथवा वाट है | सामर्थ्य के अन्य बड़े मात्रक भी हैं जैसे किलोवाट (kW) तथा मेगावाट (mW)
⇒1 kW=1000 वाट या 103 वाट
⇒1 mW=1000000 वाट या 106 वाट
Note:- मशीनों की सामर्थ्य (Power) को अश्वशक्ति (Horse Power) में भी व्यक्त किया जाता है |
[ 1 अश्व शक्ति (H.P.)=746 वाट ]
कार्य के प्रकार (Type of work)
कार्य मुख्यतः तीन प्रकार के होते है-(A) धनात्मक कार्य (Positive work) ⇒ जब वस्तु पर लगाए गए बल का विस्थापन बल की ही दिशा में होता है, तब बल द्वारा किया गया कार्य (Work) धनात्मक होता है |
उदाहरण :- जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को पृथ्वी सतह से ऊपर उठाता है, तब व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य धनात्मक होगा |
(B) ऋणात्मक कार्य (Negative Work) ⇒ वस्तु का विस्थापन वस्तु पर लगे बल के विपरीत दिशा में होता है, तब बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होता है |
उदाहरण :- जब हम पृथ्वी पर पड़ी किसी वस्तु को ऊपर उठाते है, तब पृथ्वी के गुरुत्वीय बल द्वारा वस्तु पर किया गया कार्य ऋणात्मक होगा |
(C) शून्य कार्य (Zero work) :- जब बल और विस्थापन एक दूसरे के लम्बवत होते हैं, तब बल द्वारा कृत कार्य शून्य होगा |
ऊर्जा की अभिधारणा (Concept Energy)
किसी भी वस्तु में कार्य करने की
क्षमता, उस वस्तु की ऊर्जा को व्यक्त करती है | अर्थात् जिस वस्तु में
कार्य करने की क्षमता जितनी अधिक होती है, उस वस्तु में ऊर्जा भी उतनी ही
अधिक होगी |उदाहरण :- रोड पर दौड़ती हुई कार, बन्दूक से निकलने वाली गोली, झरने से गिरता हुआ पानी, और पृथ्वी से ऊपर जाते हुए रॉकेट की गति आदि में इनकी गति के कारण इनमें कार्य करने की क्षमता होती है, अतः इन सब में ऊर्जा है |
ऊर्जा का मात्रक भी वही होता है, जो कार्य का मात्रक (जूल) होता है | यह भी एक अदिश राशि है |
गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy)
प्रत्येक वस्तु में उसकी गति के कारण उसमें गतिज ऊर्जा होती है | यदि कोई m द्रव्यमान की वस्तु v वेग से गति कर रही हो, तोउसकी गतिज ऊर्जा होगी-
स्थितिज ऊर्जा की अभिधारणा (Concept of Potential Energy)
चित्रानुसार m द्रव्यमान का एक लाल
बॉक्स v वेग से गति करता हुआ, घर्षणरहित तल पर पड़ी एक स्प्रिंग से टकराता
है, और स्प्रिंग को x दूरी तक दबाकर रुक जाता है, यानी बॉक्स का वेग शून्य
हो जाता है |टकराने से पूर्व बॉक्स की गतिज ऊर्जा होगी |
जब यह बॉक्स स्प्रिंग से टकराता है, तब स्प्रिंग x दूरी तक दब जाती है, और बॉक्स का वेग भी शून्य हो जाता है, अतः बॉक्स की गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है | चूकि हम जानते हैं, कि ऊर्जा का केवल रुपान्तरण होता है, ऊर्जा नष्ट नहीं होती है |
बॉक्स की गतिज ऊर्जा स्प्रिंग के दबने (सम्पीडन) में खर्च हुई, इस अवस्था (स्प्रिंग की दबने अथवा सम्पीडन की अवस्था) में स्प्रिंग में तनाव रहता है | स्प्रिंग तनाव को कम करने के लिए बॉक्स को धकेल कर बॉक्स को उतनी ही गतिज ऊर्जा प्रदान कर देती है |
अर्थात् बॉक्स ने अपनी गतिज ऊर्जा के कारण स्प्रिंग पर जितना कार्य किया, वह कार्य स्प्रिंग में उसकी विशेष अवस्था (सम्पीडन) के कारण स्थितिज ऊर्जा के रूप में जमा हो गया | और जब स्प्रिंग अपनी सम्पीडन की अवस्था से सामान्य अवस्था में आयी, तब स्प्रिंग के अन्दर जमा स्थितिज ऊर्जा बॉक्स को गतिमान करने में खर्च हो गयी |
अतः किसी वस्तु (जैसे-स्प्रिंग) में विशेष अवस्था अथवा स्थिति के कारण कार्य करने की जो क्षमता होती है, उसे वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
स्थितिज ऊर्जा के विभिन्न स्वरुप (Different forms of Potential Energy)
(1) प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा (Elastic Potential Energy) :-
प्रत्यास्थता के गुण के कारण कोई भी स्प्रिंग खीचे जाने अथवा दबाए जाने का
विरोध करती है | अतः जब किसी स्प्रिंग को खीचा अथवा सम्पीडित किया जाता
है, तो स्प्रिंग की प्रत्यास्थता के विरुध्द कुछ न कुछ कार्य अवश्य ही करना
पड़ता है | किया गया यह कार्य ही स्प्रिंग में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा के
रूप में संचित हो जाता है |स्प्रिंग की प्रत्यास्थ स्थिति ऊर्जा,
जहाँ k= स्प्रिंग का बल नियतांक है |
x = स्प्रिंग में खिचाव
(2) गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy) :- चित्रानुसार एक m द्रव्यमान के पिण्ड को पृथ्वी तल से h ऊँचाई तक उठाया जाता है | पिण्ड को h ऊँचाई तक ले जाने के लिए हमें गुरुत्व बल (mg) के विरुध्द कार्य करना होगा और यह कार्य ही पिण्ड में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है | जिसे उस वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
अतः पिण्ड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा,
U=गुरुत्व बल के विरुध्द किया गया कार्य = पिण्ड का भार ⨉ ऊँचाई
Note – ऊपर सूत्र में पृथ्वी तल (h=0) पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा शून्य मानी गयी है | यदि पुनः पिण्ड स्वतन्त्रता-पूर्वक गिरे तो mgh परिमाण का कार्य प्राप्त होगा |
(3) वैद्युत् स्थितिज ऊर्जा (Electrical Potential Energy) :- यदि वैद्युत् क्षेत्र में कोई आवेशित वस्तु रखी है, तो वह भी गुरुत्वीय क्षेत्र की भाँती वैद्युत् बल का अनुभव करेगी | और वैद्युत् बल के प्रभाव से पिण्ड में कार्य करने की क्षमता का समावेश होगा | वस्तु के विशेष अवस्था (विद्युत् क्षेत्र में स्थित होने) के कारण ही कार्य करने की यह क्षमता होती है, इसलिए कार्य करने के इस क्षमता अथवा ऊर्जा को वैद्युत् स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
(4) चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा (Magnetic Potential Energy) :- चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी गतिशील आवेश या धारावाही चालक में चुम्बकीय बलों के कारण जो कार्य करने की क्षमता उत्पन्न होती है, उसे चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं |
(5) रासायनिक ऊर्जा (Chemical Energy) :- पदार्थों में उनकी विशेष परमाणविक संरचना (Atomic Structure) के कारण जो स्थितिज ऊर्जा निहित होती है, उसे रासायनिक ऊर्जा कहते हैं |
(6) नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) :- पदार्थ के मूल कणों यानी प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन के नाभिक में रहने की विशेष अवस्था के कारण नाभिक में जो स्थितिज ऊर्जा निहित रहती है, उसे नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं |
(7) द्रव्यमान ऊर्जा (Mass Energy) :- महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन के अनुसार, प्रत्येक पदार्थ के उनके द्रव्यमान के कारण उनमें ऊर्जा होती है, जिसे द्रव्यमान ऊर्जा कहते हैं |
यदि m द्रव्यमान को ऊर्जा में बदले तो हमें कुल ऊर्जा प्राप्त होगी-
[E=mc2]
जहाँ c=3⨉108 मी०/से० प्रकाश की चाल है |
ऊर्जा संरक्षण का सिध्दान्त (Principle of Conservation of Energy)
इस सिध्दान्त के अनुसार, “ऊर्जा को न ही
उत्पन्न किया जा सकता है, और न ही नष्ट किया जा सकता है | इसे केवल एक रूप
से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है” विश्व की समस्त ऊर्जा का
परिमाण सदैव स्थिर रहता है |उदाहरण :- हम घरों में बल्ब या ट्यूबलाइट लगाकर विद्युत् ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित कर लेते हैं |
(ii) सोलर सेल की मदद से हम सौर ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित कर लेते हैं |
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